सर्वगुण संपन्न है भारतीय भोजन की पारंपरिक थाली
सुमन कुमार
भारत ही नहीं पूरी दुनिया के आहार विशेषज्ञ एक बात पर एकमत होते हैं कि किसी भी शरीर के लिए सबसे बेहतरीन आहार वही होता है जो स्थानीय स्तर पर पारंपरिक रूप से उपलब्ध होता है। उदाहरण के लिए उत्तर भारत में मिलने वाला भोजन उत्तर भारतीयों जबकि दक्षिण भारत में मिलने वाला भोजन दक्षिण भारतीयों के शरीर के हिसाब से उपयुक्त माना जाता है। किसी भी क्षेत्र का आहार स्थानीय जलवायु, मौसम, वहां की मिट्टी और पानी आदि के अनुसार निर्धारित होता है। इसलिए किसी एक इलाके में यदि कोई आहार वहां के निवासियों के लिए बेहतर है तो जरूरी नहीं है कि वो दूसरे क्षेत्र के लोगों के लिए भी बेहतर ही होगा।
मगर उत्तर हो या दक्षिण, पूरब हो या पश्चिम, पारंपरिक भारतीय भोजन के बारे में एक बात तो तय है कि हमारे पूर्वजों ने आहार का निर्धारण करने में असाधारण बुद्धिमत्ता का परिचय दिया था। अगर हम पूरे देश के पारंपरिक आहार व्यवस्था पर एक नजर डालें तो आसानी से इस बात को समझ पाएंगे।
अपनी किताब द ग्रेट इंडियन डाइट में मशहूर अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी कुंद्रा लिखती हैं, ‘हर राज्य की अपनी अलग थाली होती है परंतु इसकी मूल संरचना लगभग एक जैसी ही होती है।’ इसके अनुसार किसी भी राज्य की थाली को देखें तो उसमें आमतौर पर:
मुख्य आहार के रूप में रोटी, भाकरी, पूड़ी, इडली, डोसा, चावल या खिचड़ी होती है। ये सभी अनाज का उत्पाद है जो कि हमारे शरीर को कार्बोहाइड्रेट की आपूर्ति करता है।
दूसरे नंबर पर दाल, रसम, सांबर, उसल, छोले आदि का नंबर है। ये सभी शरीर के लिए एक और अनिवार्य तत्व प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं।
इसके बाद आती है सब्जियां, जिसमें सूखी या तरीदार अथवा दोनों तरह की सब्जियां आमतौर पर एक साथ खाई जाती हैं। इनमें मौसमी सब्जियां ज्यादा होती हैं। ये फाइबर यानी रेशे के साथ-साथ खनिज लवण की आपूर्ति हमारे शरीर को करती हैं।
इन तीनों किसी भी भारतीय आहार के मुख्य अवयव होते हैं मगर भारतीय भोजन का एक और अनिवार्य तत्व है डेयरी उत्पाद। भारतीय भोजनों में पनीर, दही, छाछ का प्रयोग उत्तर से लेकर दक्षिण तक समान रूप से होता है। ये शरीर को प्रोटीन के साथ-साथ कैल्सियम की भरपाई करते हैं।
अब बात करते हैं भारतीय भोजन में इस्तेमाल होने वाले मसालों की जिनके बिना भारतीय रसोई की कल्पना भी नहीं की जा सकती। सरसों, हल्दी, लाल मिर्च, हींग, मेथी दाना, इमली, गरम मसाला, धनिया और जीरा कादि को भारतीय भोजन की आत्मा कह सकते हैं। इनमें से अधिकांश मसालों में शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट्स और गंभीर किस्म के चिकित्सीय गुण पाए जाते हैं। हींग की गैस नाशक क्षमता जग जाहिर है। गरम मसाले का अंग माना जाने वाले दालचीनी की चिकित्सीय क्षमता तो अब वैज्ञानिक शोधों से प्रमाणित की जा चुकी है। यहां जब मैं मसालों की बात कर रहा हूं तो मैं देश के ढाबों में इनके इस्तेमाल की बात नहीं कर रहा बल्कि आम रसोई की बात कर रहा हूं जहां इनका इस्तेमाल सीमित और शरीर की जरूरत के हिसाब से होता है।
भारतीय भोजन का सबसे अनिवार्य तत्व है तेल और नमक। स्वाभाविक रूप से नियंत्रित मात्रा में तेल का इस्तेमाल शरीर की वसा और नमक का इस्तेमाल सोडियम की जरूरत को पूरा करता है।
इसके अलावा भारतीय भोजन का एक अंग मौसमी फल भी होते हैं जो कि आमतौर पर फाइबर, विटामिन और खनिज लवण से भरपूर होते हैं। हर भारतीय घर में केले की उपस्थिति अनिवार्य है। ये इतना पवित्र माना जाता है कि हर पूजा में इसे प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। ये देश के हर हिस्से में पाया जाता है और जलवायु के अनुसार इसकी बस किस्म बदलती है। ये जरूर है कि भोजन की थाली में फल की सीधी पहुंच नहीं होती बल्कि आमतौर पर भोजन के आरंभ या अंत में मीठे के साथ-साथ फल खाया जाता है।
अगर हम पारंपरिक भोजन की बात करें तो उसमें मीठे के रूप में आजकल की तरह चीनी से बनी मिठाइयां नहीं बल्कि गुड़ या गुड़ अथवा शहद डालकर तैयार कोई व्यंजन शामिल किया जाता रहा है। समय के साथ ये आदत बदल गई है मगर अब भी देश के कई हिस्सों में खाने के बाद गुड़ की छोटी सी डली खाने की परंपरा चली आ रही है जो कि शरीर में खून की कमी को दूर करती है और लाल रक्त कोशिकाओं में बढ़ोतरी होती है। यही नहीं, ये शरीर के प्रदूषक तत्वों को बाहर निकालने में भी मददगार होती है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो भारतीय भोजन हमारे शरीर को हर तरह से पोषित करने के हिसाब से डिजाइन किए गए हैं। मुश्किल तब खड़ी होनी शुरू होती है जब भोजन को बहुत अधिक मात्रा में लिया जाता है। इसके पीछे आम तौर पर हमारे देश का पिछले 200 सालों का इतिहास मुख्य वजह है जिसने खान-पान को लेकर आदतों में बदलाव कर दिया। दरअसल गांवों से जुड़े अधिकांश लोग ये जानते हैं कि आज से सिर्फ एक पीढ़ी पहले तक गांवों में गरीबी के कारण भोजन की कितनी कमी होती थी। इसके कारण किसी भी त्योहार या उत्सव में सामूहिक भोज के दौरान लोग जमकर जीम लेते थे। धीरे-धीरे समृद्धि आने पर ये जमकर जीमना लोगों की आदत में शामिल होने लगा।
उस पीढ़ी को तो नहीं मगर उनके बाद वाली पीढ़ी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। आहार का पोषण तो वैसा ही है मगर उसका ज्यादा इस्तेमाल शरीर को बीमार बनाने में योगदान देने लगा है। इसलिए लोग युवावस्था में ही बीमार होने लगे हैं और बीमार होने के बाद डॉक्टर की सलाह पर भोजन की मात्रा कम करते हैं। अगर हम अपने पूर्वजों की तरह जीवन के आरंभ से ही संपूर्ण पोषण वाले भोजन को नियंत्रित मात्रा में लें तो जीवन के मध्य या उत्तरार्ध में शायद बहुत सारी परेशानियों से बच जाएंगे।
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